दुष्यन्त कुमार का जन्म १ सितंबर १९३३ को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के राजपुर नवादा नामक गाँव के एक कृषक परिवार में हुआ । इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आपने एम. ए. किया । आपने आकशवाणी में विभिन्न पदों पर कार्य किया बाद में मध्य प्रदेश सरकार के भाषा विभाग से सहायक निर्देशक हो गए । अंत में भोपाल में ३० सितंबर १९७५ को हृदय गति रुक जाने के कारण आपका निधन हुआ ।
भारत देश और हिन्दी साहित्य के इतिहास में साठोत्तरी परिवेश राजनीतिक विचिन्नता और सामाजिक पीडा को लेकर आता है । साठोत्तरी साहित्य युग के साथ नित्य परिवर्तित हुआ है । स्वतंत्रता से हुए मोहभंग, जनपीडा और व्यथा साठोत्तरी कविता की आत्मा है । दुष्यंत कुमार की कविताएँ सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से युक्त है । वे मानव के विद्रोह और जागरूकता को प्रस्तुत करती है ।
दुष्यन्त कुमार ने सन १९४६ से गीत लेखन आरंभ किया । उनकी पहिली पहचान गीत-संकलित रचना अप्रकाशित रही । उनका पहला कविता संकलन सूर्य का स्वागत सन् १९५७ में प्रकाशित हुआ । इस कृति में ४८ रचनाएँ है, जिनमें व्यवस्था का प्रतिकार, संघर्ष, विश्वयुद्ध का आतंक, मोहभंग, क्रांति, व्यवस्था-विनाश, मानवता, अभिव्यक्ति चेतना, जीवन की मौलिकता तथा प्रविबद्धता, मनुष्य की लघुता और अंह, विश्वास, सुख-दुःख सहिष्णुता, प्रेमभाव, विरह, पाश्चात्य सभ्यता, समय वथा प्रेरक स्थलों के भाव स्वर विद्यमान है ।
दुष्यंत कुमार का काव्य यथार्थ से युक्त है । अपने भोगे को उन्होंने व्यक्त किया है । साधारण व्यक्ति उसकी पीडा, उसकी असहायता विभिन्न प्रभाव आदि का प्रस्फुटन उनकी कविताओं में हुआ है । जीवन संघर्षमय है, जीवन की सच्चाई का सही अर्थ संघर्षों से ही निकलता है । कवि हर कठिन स्थिति से संघर्ष करते हुए विजय अभियान में जुटे है । इसलिए वे अपने को पराजित नहीं स्वीकारते ।
आँगन में काई है, दीवारें चिकनी है, काली है, धूप से चढा नहीं जाता है, ओ भाई सूरज ! मैं क्या करूँ? मेरा नसीब ही ऐसा है खुली हुई खिडकी देखकर तुम तो चले आए, पर मैं अंधेरे का आदी, अकर्मण्य निराश तुम्हारे आने का विश्वास खो चुका था परिवारजन्य विषमता, असंतोष बेरोजगारी, दुविधा आदि द्वारा व्यक्ति और सामाजिक मन में विवशता की स्थिति निर्माण होती है कवि इस स्थिति में अपनी असहायकता का अनुभव करता है ।
हमें यथार्थ के साथ वर्तमान में ही जीना है । कल की चिंता में हम आज से मुक्ति पा नहीं सकते । वास्तव में दुष्यंत ऐसे कवि है जो संघर्षों की अनिवार्यता को मानते है और उनसे होकर ही अपनी राह भी निश्चित करते चलते है । दुष्यंत की कविता नयी पीढ्ची की अगुवाई करनेवाली कविता है वह नादान बच्चों की ताकत को पहचानता है । तुम आए हो सूरज स्वागत है । स्वागत घर की इन काली दीवारों पर ! मेरे बच्चे ने खेल खेल में ही यहाँ काई खुरच दी थी आओ यहाँ बैठो और मुझे मेरे अभद्र सत्कार के लिए क्षमा करो ।
देखो! मेरा बच्चा तुम्हारा स्वागत करना सीख रहा है । निराश, जीवना का दूसरा पक्ष जरूर है परंतु निराश से कहीं अधिक स्वस्थ आशा होती है । भविष्य के प्रति कवि की श्रद्धा आड़िग है । जीवन के संघर्ष पथ में असंभव-संभव की अनगिनत स्थ्तियाँ आती है । हमारा साथ देने वाला कोई न भी हो, युग हमारी आहट अलक्षित भले ही करें, हमें निशंक हो हर मार्गक्रमण करना है । हम अपनी क्षमता पर विश्वास करें । सूर्य सृजक हैं, एक संघर्षमान, योद्धा है, वह सतत संघर्षी है, धरती को उर्वर बनाने का कार्य दिवसभर करता है । अपना म्लान और स्वेदपूर्ण आनन सिंधु में डुबोकर फिर नए दिवस के आरंभ का विश्वास देकर जाता है ।
कवि कह रहे हैं जीवने में आगे बढ़ते हुए मैं बहुत संभल-संभल कर अपने कदम आगे बड़ा रहा हूँ । चलते हुए मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं पहाडों पर की ऊँचाई से नीचे उतर रहा हूँ । ऐसे में पैरों को अपने वश में रखना भी कठिन होता है । इसीलिए उन्हें संभलकर चलना पड रहा है । आगे वे कहते हैं कि हर कदम पर मेरा दिल मूझे रोकता है, टोकता है । बाधा पहुँचाना या बताने की कोशिश करना कि कहीं गलती न हो जाए, और दिल इस प्रकार रोकता है जैसे मैं बहुत बड़ी गलती करने जा रहा हूँ ।
कहने का मतलब यह है कि कवि को उनका दिल समझाता रहता है कि कोई गलती न कर बैठे। इस प्रकार कवि सतर्क होकर जीवन में आगे बढ़ रहे हैं ।
इस पद्यारा में ऐसा लगता है कवि किसी बंधन में पाते हैं और उसमे मुक्त होना भी चाहते हैं । वे कह रहे हैं कि उनका मन तरस रहा है नये-फूलों की खुशबू का आस्वादन करने को । बाहर की खिली हुयी धूप में और खुली हवा में खुश होकर गाने को और मुस्कुराने को । अर्थात् वे खुशी-खुशी अपना दिन बिताना चाहते हैं बंधन में रहकर नहीं ।
कवि को अंधकार ने अपने अंधेरे भयावह गोद में बंधक बना रखा है । अंधकार मन का सूनापन या किसी और प्रकार का जैसे संघर्ष और अशांति का अंधकार, जिसने कवि को अपनी बाहों में कैद कर रखा है कवि को वही बंधन उकसाता है कि वे इस बंधन से अपने को मुक्त कर लें । कहने का तात्पर्य यह है कि जब किसी भी बात की अति हो जाती है तब मन विद्रोह करने लगता है । ऐसा ही कवि के साथ हुआ है मन के अंधकार (दुख, कष्ट, बेरोजगारी, आदि ) से वे विद्रोह कर उससे छूटकरा पाना चाहते हैं । यह कविता शोषोत, यातनामय जीवन का विरोध और मानवीय जीवन तथा सही व्यवस्था की तलाश है ।
गीत गाकर चेतना को….पूरा कर दिया मैंने । इस पधांश में कवि अपनी चेतना के बारे में बता रहे हैं कि उन्होंने एक गीत गाकर अपनी चेतना को वर प्रदान किया है । अर्थात् अपनी चेतना का प्रमाण दिया है । जब किसी भी कारण से चाहें दुःख हो या कोई अन्य घटना उसका इजाहार न किया जाए तो अचेतन का प्रमाण है परन्तु कवि अपनी चेतना का प्रमाण देता है गीत गाकर । और दुःख मे आँसू बहाकर अपने गमों को दर्द को आदर दिया है । लोग दुःख को स्वीकार करने को तैयार नहीं होते, लेकिन कवि ने अपने दुःखों को आँसुओं के मध्यम से स्वीकार किया है, और आदर दिया है । कवि की आत्मा की भूख थी प्रीत अतः उन्होंने दुःखों को सहकर अपनी जिन्दगी का चित्रपूर्ण किया है । अर्थात् कवि ये कहना चाहते हैं कि उन्होंने जीवन की खुशियों को अपनाकर आधा जीवन न जीकर दुःखों को भी समान रूप से अपनाकर अपना जीवन सम्पूर्ण कर लिया है । यहाँ पर कवि जीवन के संघर्षमय चित्रों को प्रस्तुत करता है ।
जो कुछ भी दिया….सीमित कर दिया मुझे । कवि ईश्वर से कहते प्रतीत होते है या फिर अपनी प्रीत से । कवि कहते हैं तुमसे जो कुछ भी मिला मुझे वह अनश्वर है यानि कभी भी नष्ट नहीं होगा । मुझे पैर से लेकर सर तक अपनेपन से या अपने प्रेम से तुमने भिगो दिया है, या सराबोर कर दिया है । मैं गाकर कुछ कह सकूं इतना साहस नहीं कर पाता । सकुचाता हूँ लेकिन फिर भी यह तो कहना चाहूँगा कि मुझे तुमने अपने तक ही सीमित कर लिया है । तुम्हारे अतिरिक्त मैं कुछ और सोच या देख नहीं पाता हूँ । जीवन में मोह के क्षण हमारे व्यक्तित्व को दाँव पर लगानेवाले होते है । प्रेम के नाम पर वर्तमान स्थितियों में विचित्रता है जीवन में मोह के क्षण हमारे व्यक्तित्व को दाँव पर लगानेवाले होते है । ऐसे परिवेश में कमल को आदर्श मानकर चलना है ।
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